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क्या सच में डी डी फ्रीडिश (DD Freedish) एक राष्ट्रीय फ्री टू एयर "डायरेक्ट टू होम"सर्विस है?

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जैसा की आप जानते ही होंगे की डी डी फ्रीडिश को दिसंबर 2004 में लांच किया गया था तब डी डी फ्रीडिश में देश के विभिन्न राज्यों के चैनल्स को जोड़ा गया था. जैसे की केरली टीवी, मेघा टीवी, बीबीसी , Aalami Sahara, आदि चैनल्स अलग अलग भाषा में उपलब्ध थे. पर आज अगर देखा जाए तो डी डी फ्रीडिश में हिंदी चैनल्स के अलावा अन्य किसी राज्य के चैनल्स नहीं मिलेंगे.

तो देश के लोगो का अब तक की और आज की सरकारों से यही सवाल होता है की क्या डी डी फ्रीडिश में अन्य राज्यों या भाषाओं के चैनल्स को जोड़ने के बारे में अभी सोचा गया है? अगर सोचा जाता तो आज 14 साल बाद भी उनके राज्य या भाषा के एक भी चैनल क्यों नहीं है, क्या गरीब लोग हिंदी बोलने वाले राज्यों में ही है.

 

इसका मतलब ये है की ये राष्ट्रीय सेवा केवल हिंदी बोलने वाले राज्यों तक सीमित रह गयी है, जो लोग हिंदी बोलना नहीं जानते क्या वो डी डी फ्रीडिश को लगवाते या देखते होंगे? सीधी सी बात है नहीं. सरकार चाहे कोई भी, या कोई भी सरकारी संस्था हो उसे देश के हर वर्ग, धर्म और भाषा के लोगो का ख्याल रखना चाहिए।

डी डी फ्रीडिश की पहुँच आज 14 साल बाद भी अंडमान और निकोबार में नहीं है, क्यों ? क्या वहां भारतीय नहीं रहते है. अगर कोई टेक्निकल समस्या है तो गवर्नमेंट को वहां के लोगो के लिए कोई उपाय खोजना चाहिए, पर नहीं, कौन इतनी मगजमारी करे?

अगर डी डी फ्रीडिश वास्तव में एक राष्ट्रीय सेवा है तो इसमें हर राज्य के एक या दो चैनल जरूर होने चाहिए। कुछ नहीं तो एक न्यूज़ और एक एंटरटेनमेंट चैनल तो होना ही चाहिए। एक देश एक DTH होना चाहिए जिसमे राज्य सारे होने चाहिए चाहे वो जम्मू कश्मीर हो, अंडमान निकोबार, नागालैंड हो या मालद्वीप हो.

आज हम सब भारतीयों को गर्व है की उनके देश में मनोरंजन के लिए एक ऐसी सेवा है जो पब्लिक के लिए पूरी तरह से फ्री है, मतलब सरकार द्वारा फ्री एंटरटेनमेंट की बहुत ही अच्छी व्यवस्था है, आप किसी भी दूसरे देश को देखेंगे तो पाएंगे की इस मामले आप बहुत अच्छे है. यह सरकार का सराहनीय कदम था और रहेगा. लेकिन समय के साथ साथ या टेक्नोलॉजी के साथ साथ चलना जरुरी है। ताकि देश के बाकी लोगो को हित ध्यान में रहे.


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